Sunday, September 8, 2024
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रिजेक्शन पर बोले मिर्जापुर के शरद शुक्ला: किसी भी काम के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी, क्योंकि किस्मत को भी इसकी जरूरत होती है

वेब सीरीज मिर्जापुर 3 अमेजन प्राइम वीडियो पर 5 जुलाई को स्ट्रीम हुई। इस सीरीज की खूब चर्चा हो रही है। इस बार इस सीजन में शरद शुक्ला का किरदार काफी उभरकर सामने आया है। इस किरदार को निभाने वाले एक्टर अंजुम शर्मा ने दैनिक भास्कर से बातचीत की।

रिजेक्शन के बारे में बात करते हुए अंजुम शर्मा ने कहा है कि किसी भी काम के लिए निरंतर अभ्यास बहुत जरूरी है। किस्मत भी बहुत जरूरी है। लेकिन किस्मत के लिए भी बहुत अभ्यास की जरूरत होती है।

आइए जानते हैं सवाल-जवाब सेशन के दौरान अंजुम शर्मा ने और क्या कहा…

रिजेक्शन पर बोले मिर्जापुर के शरद शुक्ला: किसी भी काम के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी, क्योंकि किस्मत को भी इसकी जरूरत होती है

क्या आपको अपने करियर की शुरुआत में अस्वीकृति का सामना करना पड़ा होगा?

ऑडिशन देना और उसमें फिट न होना, मैं इसे रिजेक्शन नहीं मानता। रिजेक्शन का मतलब है कि किसी फिल्म के लिए फाइनल होने के बाद कुछ ऐसा हो जाता है और बात आगे नहीं बढ़ती। मेरे साथ ऐसा दो-तीन बार हुआ। तब मुझे थोड़ा दुख होता है। मैं थिएटर से जुड़ा रहा। इसलिए मैंने प्रैक्टिस जारी रखी। मेरी ग्रोथ कभी नहीं रुकी।

आज आप लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, आप उन लोगों को क्या सलाह देंगे जो इंडस्ट्री में आना चाहते हैं?

मेरा सुझाव बस इतना है कि अगर आप इस रचनात्मक दुनिया में किसी भी रूप में काम करना चाहते हैं, तो अभ्यास बहुत ज़रूरी है। किस्मत भी बहुत ज़रूरी है। लेकिन किस्मत के लिए भी बहुत अभ्यास की ज़रूरत होती है। अभ्यास से किस्मत 100 गुना बढ़ सकती है। अपनी ज़िंदगी को चुनौती मत बनाइए, जो भी कर रहे हैं, उसमें खुश रहने की कोशिश कीजिए।

रिजेक्शन पर बोले मिर्जापुर के शरद शुक्ला: किसी भी काम के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी, क्योंकि किस्मत को भी इसकी जरूरत होती है

आप अभिनय में कैसे आये?

मुझे बचपन से ही फिल्में देखने का शौक रहा है। मैं हर शुक्रवार को थिएटर में जाकर फिल्म देखता था। तब तक मैंने कभी एक्टिंग के बारे में नहीं सोचा था। बाद में जब मैंने सोचा कि मुझे क्या करना चाहिए, तो मैंने फिल्मों में डिप्लोमा करने के बारे में सोचा। मैंने फिल्म इंस्टीट्यूट से एक साल का डिप्लोमा किया। वहां मैंने विश्व सिनेमा को देखा और समझा। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी जादुई शहर में आ गया हूं।

संस्थान से निकलने के बाद मैंने सिनेमेटोग्राफर कमलाकर राव को असिस्ट किया। उसके बाद कुछ समय तक निर्देशन में भी सहायक रहा। इस दौरान मुझे एहसास हुआ कि मुझे एक्टिंग में ही करियर बनाना है। लेकिन इसके लिए तैयारी जरूरी थी।

ऑडिशन में सिलेक्ट होने के बाद मुझे लगा कि मैं एक्टिंग के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हूं। इसके बाद मैंने थिएटर करना शुरू किया। मैंने 6 साल तक मकरंद देशपांडे के साथ काम किया। इसी दौरान मुझे ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में काम करने का मौका मिला।

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जब आपके परिवार को आपके अभिनय पेशे के बारे में पता चला तो उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?

मेरे परिवार के लोगों की हमेशा से कला और संगीत में रुचि रही है। वे मुझे कला और संगीत में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। लेकिन ऐसा नहीं था कि मुझे इसमें ही अपना करियर बनाना था। जब मैंने फिल्म संस्थान में दाखिला लिया तो मेरे परिवार वालों की अजीब प्रतिक्रिया थी।

लेकिन मुझे वहां तकनीकी चीजें सीखनी थीं, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। जब मैंने थिएटर करना शुरू किया, तो मेरे परिवार को पता चला कि मुझे अभिनय में दिलचस्पी है। वे मुझसे कहते थे कि वही काम करो जो मुझे समझ में आता हो। नहीं तो भविष्य में दिक्कत हो सकती है।

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